Tuesday 4 April 2017

दिल या दिमाग

शारदीय नवरात्र का आज अंतिम दिन है ,शक्ति के उपासकों के लिये ये बड़ा ही पावन समय होता है जब वे प्रकृति की उस उर्जा की स्तुति एवं आराधना करते हैं जो अपनी सौम्यता के साथ-२ दृढ़ता के लिये भी जानी जाती हैं.शास्त्रों के हिसाब से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर कहा गया है क्योंकि उनके अन्दर स्त्री एंवं पुरुष दोनों के रूप विद्दमान हैं पर मुझे लगता है कि शक्ति के साथ भी यही बात लागु होती है.शक्ति,प्रकृति या मां दुर्गा जो अपने आप में अनंत संभावनाओं को समेटें हुवें हैं,उन संभावनाओं का प्रदर्शन कभी भी संपूर्ण तरीके से नहीं किया पर शक्ति ही संपूर्ण ब्रम्हांड में ऐसी रचना है जिसके अन्दर संपूर्ण रचनाएँ,भावनाएं,सृजन,विध्वंश इत्यादि छिपे हुवे हैं.शक्ति की आराधना करने वालों को शक्ति से सीखना चाहिए कि कैसे अनंत उर्जा को संग्रहित करके रखा जा सकता है.
               संपूर्ण विश्व में एक बहस चलती रहती है कि मनुष्य अपने दिल की सुने या दिमाग की क्यूंकि ऐसा माना जाता है कि दिमाग भावुक फैसले लेनें में कमजोर होता है और दिल दृढ फैसले लेने में कमजोर होता है पर फैसले तो हमें लेने ही होते हैं तो किसको सुना जाये मुख्य रूप  से इसी की पड़ताल यह लेख करता है.नारीवादी विचारकों का भी मानना है कि पर्यावरण सरंक्षण के लिये नारीवादी विचारधारा के प्रसार की आवश्यकता है क्यूंकि नारीवाद संरक्षण को प्रोत्साहित करता है.पर संरक्षण करने के लिये हमें भावुक होने के साथ-२ दृढ भी होना आवश्यक है और यहीं पर हमें शक्ति के रूप से प्रेरणा मिलाती है जो हमेशा से संतुलन बनाने के लिये जानी जाती है.मनुष्य को हमेशा दृढ़ता और भावुकता के बीच में संतुलन स्धापित करने का प्रयास करना चाहिए और इस द्वन्द में पड़ने के बजाय कि हम किसकी सुनें उसे यह समझना चाहिए की द्वन्द से सिर्फ विनाश होता है बशर्ते उस विनाश के बाद कुछ नवीन का सृजन हो जाये पर यह तो समय पर निर्भर है इसके बारे में हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते.
      शक्ति की उपासना से हम कई तरह की शिक्षा पा सकते हैं पर हम इस बात को कभी भी नजरंदाज नही कर सकते कि त्रिदेवों के सारे रूपों को खुद में समाहित करने के बावजूद कैसे संतुलन स्थापित करते हुवे शक्ति सारी उर्जाओं का संयोजन प्रस्तुत करती हैं.हमें शक्ति से निर्णय लेने की कला सिखनी चाहिए.बिना भ्रमित हुवे शक्ति हमें यह बतलाती हैं कि दिल और दिमाग के बीच में द्वन्द रखने की जगह हमें संतुलन स्थापित करने पर जोर देना चाहिए इस तरह हम जल्दी एंवं प्रभावी निर्णय लेने में कामयाब हो सकते हैं.हमें यह समझना होगा की द्वन्द स्थापित करने से नकारात्मक उर्जा का फैलाव होता है जबकि संतुलन बनाने से सकारात्मक उर्जा फैलती है जो हमारे शारीरिक व्यवस्था पर अच्छा प्रभाव डालती है.उर्जा के दुरूपयोग और ह्रास की जगह हमें शक्ति से सिख लेते हुवे उसके सदुपयोग पर जोर देना चाहिए.जब हम दिल और दिमाग की बहस में उलझते तो उर्जा का क्षय निश्चित है.
        मनुष्य को अब इस पड़ाव पर आके समझना ही होगा कि उसे द्वन्द से कुछ हासिल नहीं होने वाला बशर्ते वह संतुलन बनाने का प्रयास करे और संघर्ष से बचे.संघर्ष नवीनता की एक आवश्यक प्रक्रिया के रूप में माना जाता रहा है पर संतुलन ने भी नवीनता को प्रदान किया है.हर संघर्ष के बाद भी हमें संतुलन बनाना ही पड़ता है तो संतुलन बनाने का पहला प्रयास खुद से क्यूँ न हो दिल और दिमाग के बीच के संतुलन के रूप में.  

No comments:

Post a Comment