Thursday 29 December 2016

पूस की रात, प्रेमचंद चाचा की दकियानुशी बात

मेक इन इंडिया का दौर चल रहा है और यहाँ हम खलिहर बैठे कौड़ ताप रहे हैं.राष्ट्रपति जी का कहना है की ७ साल में सबसे कम रोजगार उत्प्पन हुआ है पर जीडीपी महारानी तो कुछ और बता रही हैं.पर मंगरुआ बड़ा खुश है आजकल कहता है रामराज्य आ गया है अब तो राजा साहब कहते ही सारा बात मन जायेंगे.क्या हुआ जो अब वो गली-२ नहीं घूम सकते भैया ये तो डिजिटल जमाना है वो मोबैलिया से जान जायेंगे और जो गलती करेगा उसे वनवास का रास्ता दिखा देंगे तुम तो हो खलिहर कवनो काम नाहीं है.हमने कहा उ सब छोड़ा भैया ठण्डा बड़ा बढ़ गया है  किसानी कैसी चल रही है.ठंढा में गेंहू के खेतवा में पानी चलावे में हालत ख़राब हो जात होगी.मंगरू चचा ने कहा 'बबुआ इ जाड़ा ता आजकल लोगन के कुछ ज्यादा ही बुझात है का पहिले न पड़ो इ जाड़ा पर का करबा हमनी का त हमेशा से खेती किआ हैं न त आदत पड़ गया है.'
                   चचा की बात ने मुझे प्रेमचंद जी के पूस के रात वाली कथा की यद् दिला दी. १ नीद के चक्कर में जब किसान ने पूरा फसल ही गवां दिया. पर ये किसान कब तक नींद में सोयेगा इसका कुछ भी पता नहीं चलता क्यूंकि उसे तो हर रोज सपने दिखाये जाते हैं अब. सो प्रेमचंद जी आप भी शोषण करने वाले ही निकले. कहाँ उदारवाद ने कहा की बदलाव होगा आपने तो बदलाव की प्रक्रिया को रोकने का गुरुमंतर दे दिया. कैसे फसल को चरना है आपने समझा दिया साढ़ और भैसों को. नहीं आ पाये आप भी उस सामंती सोच से बाहर जो शोषण को बढ़ावा देती है, रह गए आप भी दकियानुशी विचार वाले आदमी.
          कोई दरबार नहीं मिला वरना आप भी तो भांट बनने में लग ही गये थे लग रहा है आपको भविष्य का अनुमान हो गया था कि कैसे लेखनी को बेचना है पर खरीदार नहीं मिल पाये शायद आपको. गलती कर दी न गुरु अपनी बुद्धिजीवी मानसिकता से बाहर आ गए होते तो शायद आप भी y सिक्यूरिटी पा गए होते.
          देखिये न हम भी क्या बतिया रहे हैं. हमको तो आपको बताना है कि अब किसान मजे से सोता है और अब उसे अपने फसलों की रखवाली नहीं  करनी पड़ती है. सबकुछ डिजिटल है अब मां समझी जाने वाली भूमि  कैपिटल समझी जाती  है. आपका किसान अब ठण्ड नहीं सहता। नहीं समझे न अरे आजकल डिस्काउंट का जमाना है ठण्ड भी डिस्काउंट दे देती है. आपको तो पता ही नहीं की किसान अब कितना महत्वपूर्ण हो गया है. कल कि ही तो बात है १ पार्टी ये कह के सत्ता में आयी की अगर हम जीते तो न्यूनतम समर्थन मूल्य ५०% बढ़ा देंगे जितने के बाद उन्होंने बताया की अब उन्हें पता चला है की अगर ऐसा हुआ तो बाजार की व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी. मध्यम वर्ग तबाह हो जायेगा।अब तो जान गये न देश की ६०% से ज्यादा किसानी से जुड़े लोग कितने विकसित हो गए हैं.
      आपका नींद वाला फार्मूला काम कर गया है किसान तो अब बस अछे दिनों के सपने देखते रहता है और हाँ आपकी याद में जो घर छोड़ा गया था वो गिर गया है और १ आदमी भी मर गया है पर किसी ने कोई सवाल नहीं किया क्यूंकि अब सब जान गये हैं की जब सेना का जवान मर सकता है तो आम इन्सान क्यों नहीं.
         बिग बिलियन सेल आजकल खूब चल रही है तो क्या कहते हैं बेच दू मैं भी अपनी अंतरात्मा या आपकी तरह ही कोई फसल चरने का फार्मूला दे दू.  
  चलिये कौड़ा ठंढा गया है हम भी चल के बिग बिलियन सेल वाला जैकेटवा पहन लें.